Ujjain Mahakaleshwar: सावन महीने में उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें भस्म आरती से पहले किए जाने वाले जलाभिषेक का विशेष महत्व होता है। इस पवित्र जलाभिषेक में भारत के विभिन्न तीर्थों से लाए गए जल को मिलाकर भगवान शिव को अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि इस जल में तीर्थों की समग्र पवित्रता समाहित होती है, जो भगवान शिव को प्रसन्न करने के साथ-साथ भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति में सहायक होती है। सदियों से चली आ रही इस परंपरा का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है, जो श्रद्धालुओं को गहराई से आकर्षित करता है और उनकी आस्था को और प्रगाढ़ बनाता है। महाकालेश्वर मंदिर की यह विशेष पूजा शिवभक्तों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है, जहां वे अपनी भक्ति और श्रद्धा को सजीव करते हैं।
कोटि तीर्थ कुंड का अद्वितीय जल
महाकालेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा में प्रयुक्त होने वाला पवित्र जल कोटि तीर्थ कुंड से लाया जाता है, जो मंदिर परिसर में स्थित एक प्राकृतिक जल स्रोत है। इस कुंड का जल अद्भुत औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है और इसका सेवन करने से अनेक रोग दूर होने की मान्यता है। शास्त्रों के अनुसार, कोटि तीर्थ कुंड में स्नान करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है, जिससे यह कुंड भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल बन गया है। सदियों से शिप्रा नदी और इस पवित्र कुंड के जल से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया जा रहा है, जो इसे धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाता है। इस कुंड का पवित्र जल भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना में प्रमुख भूमिका निभाता है और श्रद्धालुओं के लिए आस्था और भक्ति का मुख्य केंद्र है।
महाकालेश्वर मंदिर की पवित्र परंपरा
महाकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन भगवान महाकाल की पूजा-अर्चना के दौरान कोटि तीर्थ कुंड से लाए गए पवित्र जल का विशेष महत्व है, जिसे ‘हरिओम जल’ कहा जाता है। इस पवित्र जल का उपयोग सूर्योदय से पहले मंदिर की सफाई के बाद भगवान महाकाल को स्नान कराने और पंचामृत अभिषेक में किया जाता है। हरिओम जल न केवल भगवान महाकाल की पूजा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि मंदिर में आने वाले भक्तों के लिए भी अत्यंत पवित्र माना जाता है। सदियों से चली आ रही इस परंपरा में भक्तगण हरिओम जल से भगवान महाकाल का अभिषेक कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, जिससे उनकी आस्था और भक्ति और भी प्रगाढ़ होती है।
कोटि तीर्थ कुंड का पौराणिक महत्व
उज्जैन की पावन धरा पर स्थित कोटि तीर्थ कुंड का धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा और पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम की लंका विजय के बाद यज्ञ के आयोजन के समय सभी तीर्थों का जल एकत्र करने का दायित्व भगवान हनुमान को सौंपा गया था। जब हनुमानजी उज्जैन पहुंचे, तो उन्होंने इस कुंड में सभी तीर्थों का जल अर्पित किया, जिससे यह कुंड कोटि तीर्थ कुंड के नाम से प्रसिद्ध हो गया, अर्थात करोड़ों तीर्थों के जल वाला कुंड। महाकाल मंदिर परिसर में स्थापित हनुमानजी की प्रतिमा, जिसमें एक हाथ में कलश और दूसरे हाथ में गदा है, इस पौराणिक कथा की साक्षी है और इस कुंड के महत्व को और भी बढ़ाती है। सदियों से भक्तगण इस पवित्र कुंड के जल का महत्व समझते हुए इसे धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा-अर्चना में उपयोग करते आ रहे हैं।
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