Health: टिटनेस, जिसे आमतौर पर लॉकजॉ के नाम से भी जाना जाता है, एक गंभीर और संभावित घातक बैक्टीरियल संक्रमण है। यह संक्रमण क्लॉस्ट्रीडियम टटेनाई नामक बैक्टीरिया के कारण होता है, जो मिट्टी, धूल और जानवरों के मल में पाया जाता है। जब यह बैक्टीरिया चोट या घाव के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है, तो यह न्यूरोटॉक्सिन उत्पन्न करता है, जिससे मांसपेशियों में ऐंठन और कठोरता होती है। टिटनेस का इंजेक्शन लगाना इस संक्रमण से बचाव का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है। आइए, इस बीमारी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
टिटनेस का कारण और संक्रमण
क्लॉस्ट्रीडियम टटेनाई बैक्टीरिया गंदगी, धूल और जानवरों के मल में पाया जाता है। जब यह बैक्टीरिया किसी चोट या घाव के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है, तो यह एक जहरीला पदार्थ (टॉक्सिन) बनाता है जो तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। विशेषकर जब घाव लोहे, नाखून, कांटे, या किसी अन्य वस्तु से होता है जिस पर मिट्टी या धूल लगी हो, तो इस बैक्टीरिया के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
संक्रमण के लक्षण
टिटनेस के लक्षण संक्रमण के कुछ दिनों या हफ्तों बाद दिखाई देने लगते हैं। यहाँ टिटनेस के प्रमुख लक्षणों का विवरण दिया गया है:
मांसपेशियों में ऐंठन: टिटनेस का सबसे सामान्य लक्षण है मांसपेशियों में ऐंठन। यह ऐंठन विशेष रूप से गर्दन, पीठ और पेट में होती है।
लॉकजॉ : इस लक्षण में मुँह खोलने में कठिनाई या दर्द होता है। जबड़े के मांसपेशियाँ जकड़ी हुई महसूस होती हैं, जिससे मुँह खोलना मुश्किल हो जाता है।
मांसपेशियों की कठोरता: गर्दन और पीठ में मांसपेशियों की कठोरता और दर्द होता है। मरीज को गर्दन को मोड़ने में कठिनाई हो सकती है।
अनियंत्रित तनाव और ऐंठन: शरीर के विभिन्न हिस्सों में अनियंत्रित तनाव और ऐंठन होती है। विशेष रूप से पीठ और हाथों में ऐंठन हो सकती है।
मांसपेशियों का नियंत्रण खोना: मरीज को मांसपेशियों का नियंत्रण खोने या असामान्य व्यवहार का सामना करना पड़ सकता है।
नींद में समस्या: मांसपेशियों की ऐंठन के कारण नींद में समस्या होती है। मरीज चिड़चिड़ा या बेचैन महसूस कर सकता है।
बुखार: हल्के से लेकर उच्च स्तर का बुखार हो सकता है। बुखार की वजह से शरीर में तापमान की वृद्धि होती है।
अधिक पसीना आना: मरीज को अधिक पसीना आता है और रक्तचाप में वृद्धि हो सकती है।
टिटनेस से बचाव
टिटनेस से बचाव के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपाय टिटनेस का इंजेक्शन है। यह इंजेक्शन घाव होने के तुरंत बाद दिया जाना चाहिए, विशेषकर यदि घाव मिट्टी या धूल से संक्रमित हो। विशेषज्ञों का कहना है कि सड़क दुर्घटना के बाद, खरोंच या नाखून से लगी चोट के बाद भी टिटनेस का इंजेक्शन लेना चाहिए।
नियमित टीकाकरण
टिटनेस से बचाव के लिए नियमित टीकाकरण भी जरूरी है। बच्चों को टिटनेस के खिलाफ टीका नियमित अंतराल पर दिया जाता है, जो उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है। वयस्कों को भी हर 10 साल में बूस्टर डोज लेना चाहिए ताकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत बनी रहे।
स्वच्छता और सावधानी
टिटनेस से बचाव के लिए स्वच्छता और सावधानी भी महत्वपूर्ण है। चोट लगने पर घाव को अच्छी तरह से साफ करें और उसे संक्रमण से बचाने के लिए एंटीसेप्टिक का उपयोग करें। यदि घाव गहरा है या उसमें मिट्टी और धूल लगी है, तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें और टिटनेस का इंजेक्शन लगवाएं।
टिटनेस का इलाज
यदि टिटनेस का संक्रमण हो जाता है, तो तुरंत इलाज की जरूरत होती है। टिटनेस का इलाज मुख्य रूप से अस्पताल में किया जाता है और इसमें निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:
एंटीटॉक्सिन: टिटनेस के टॉक्सिन को निष्क्रिय करने के लिए एंटीटॉक्सिन दिया जाता है।
एंटीबायोटिक्स: बैक्टीरिया को मारने के लिए एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं।
मांसपेशियों की ऐंठन को नियंत्रित करना: मांसपेशियों की ऐंठन को कम करने के लिए मांसपेशियों को रिलैक्स करने वाली दवाइयाँ दी जाती हैं।
समर्थनात्मक देखभाल: मरीज की सांस और अन्य शारीरिक क्रियाओं को समर्थन देने के लिए चिकित्सा देखभाल दी जाती है।