Mangala Gauri Vrat: सावन का महीना पवित्रता और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस शुभ मास में प्रत्येक मंगलवार को मनाया जाने वाला मंगला गौरी व्रत, भगवान शिव की पत्नी, माता पार्वती के मंगला गौरी स्वरूप की आराधना का पर्व है। यह व्रत न केवल सुहागिन महिलाओं बल्कि कुंवारी कन्याओं के लिए भी विशेष महत्व रखता है। पार्वती मां के इस रूप की पूजा-अर्चना से सुख-समृद्धि, सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और मनचाहे वर या संतान प्राप्ति की कामनाएं भी पूरी होती हैं। आइए, इस लेख में आगे बढ़ते हुए मंगला गौरी व्रत से जुड़ी कथा और इसके महत्व को विस्तार से जानें।
कब से शुरू हो रहा मंगला गौरी व्रत
सावन मास की पवित्रता में धरती पर बरस रहा है देवी मंगला गौरी का आशीर्वाद। 23 जुलाई से प्रारंभ हो रहे मंगला गौरी व्रत में सुहागिन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं माता पार्वती की भक्ति में डूबकर अपनी मनोकामनाएं पूरी करेंगी। यह व्रत सुख-समृद्धि, अखंड सौभाग्य और मनवांछित वर की प्राप्ति के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। चार मंगलवार तक चलने वाले इस व्रत में माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। व्रत के प्रथम दिन गौरी गणेश की स्थापना कर व्रत का संकल्प लिया जाता है। व्रत के दौरान सुहागिन महिलाएं नियमों का पालन करते हुए माता पार्वती की आराधना करती हैं। व्रत के अंतिम दिन पारण की विधि संपन्न कर माता का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। आइए हम सब इस पावन अवसर का लाभ उठाकर माता मंगला गौरी की भक्ति में लीन होकर अपने जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त करें।
मंगला गौरी व्रत कथा
धर्मपाल नाम का एक समृद्ध व्यापारी था। सभी सुख-सुविधाओं से युक्त होने के बावजूद, उनके जीवन में पुत्र की कमी खटक रही थी। धर्मपाल और उनकी पत्नी, सुशीला, संतान प्राप्ति के लिए बहुत चिंतित थे। धर्मपाल, भगवान शिव के भक्त थे। संतान प्राप्ति की इच्छा में, उन्होंने कई पूजा-पाठ और दान-पुण्य किए। एक दिन, धर्मपाल को एक ऋषि मिले। ऋषि ने धर्मपाल को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया और मां मंगला गौरी की पूजा करने की सलाह दी। ऋषि के कहे अनुसार, सुशीला ने नौ मंगलवार तक विधि-विधान से मंगला गौरी व्रत रखा। व्रत के प्रभाव से मां मंगला गौरी प्रसन्न हुईं और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। इस प्रकार, धर्मपाल और सुशीला को मां मंगला गौरी की कृपा से पुत्र की प्राप्ति हुई। यह घटना दर्शाती है कि मंगला गौरी व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए अत्यंत फलदायी व्रत है। इस व्रत को विधि-विधान से रखने से मां मंगला गौरी की कृपा प्राप्त होती है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
व्यापारी धर्मपाल और उनकी पत्नी को मां मंगला गौरी की कृपा से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। उन्होंने अपने पुत्र का नामकरण किया और उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। लेकिन, उनके हर्ष को जल्द ही आघात में बदल गया जब ज्योतिषी ने उन्हें बताया कि उनका पुत्र अल्पायु होगा। यह सुनकर धर्मपाल और उनकी पत्नी विषाद में डूब गए। उन्होंने मां मंगला गौरी से प्रार्थना की और उनसे समाधान मांगा। मां मंगला गौरी प्रसन्न हुईं और उन्हें सलाह दी कि वे अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से करें जो नियमित रूप से मंगला गौरी व्रत रखती हो। ज्योतिषी ने भी इसी सलाह की थी। धर्मपाल ने अपने पुत्र के लिए एक ऐसी कन्या की तलाश शुरू की जो मंगला गौरी व्रत रखती हो। अंततः उन्हें एक गुणवान और भक्त कन्या मिली जो नियमित रूप से मंगला गौरी व्रत रखती थी। धर्मपाल ने अपने पुत्र का विवाह उस कन्या से कर दिया। विवाह के बाद, धर्मपाल के पुत्र और उसकी पत्नी सुखी और समृद्ध जीवन जीने लगे।