Hindu Belief: हिंदू धर्म की परंपराओं में, भोजन को प्रसाद के रूप में देवी-देवताओं को अर्पित करने का विधान सदियों से चला आ रहा है। यह भक्तों की श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। लेकिन ओडिशा की पवित्र धरती पर स्थित जगन्नाथ मंदिर में, भगवान जगन्नाथ के लिए भोग की परंपरा एक अनूठा स्वरूप ले लेती है। इसे ‘महाभोग’ कहा जाता है, और यह मात्र भोजन अर्पित करने से कहीं अधिक है। यह एक विस्तृत अनुष्ठान है, जो भोजन को तैयार करने से लेकर भगवान को अर्पित करने और अंत में नीम के चूर्ण के विशेष भोग तक, धार्मिक आस्था और वैज्ञानिक सूझबूझ का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। आइए, हम भगवान जगन्नाथ की इस महाभोग यात्रा के रहस्य को जानते हैं।
भगवान जगन्नाथ को क्यों लगाया जाता है 56 भोग
हिंदू धर्म में भगवान को भोग लगाने की परंपरा का विशेष महत्व है। यह भक्तों की श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है। भगवान कृष्ण, जो भगवान विष्णु के अवतार हैं, उन्हें 56 भोग अर्पित किए जाते हैं। इस परंपरा के पीछे अनेक पौराणिक कथाएं और धार्मिक मान्यताएं हैं। एक प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव के प्रकोप से ब्रज की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था। इस दौरान उन्हें सात दिनों तक भूखे-प्यासे रहना पड़ा था। भगवान कृष्ण के प्रति अपनी कृतज्ञता और प्रेम व्यक्त करने के लिए, मां यशोदा और ब्रजवासियों ने मिलकर 56 प्रकार के व्यंजन तैयार किए और उन्हें भोग लगाया। तभी से भगवान विष्णु के सभी रूपों, जिनमें भगवान कृष्ण भी शामिल हैं, को 56 भोग अर्पित करने की परंपरा शुरू हुई।
क्यों लगाया जाता है भगवान जगन्नाथ को नीम के चूर्ण का भोग
पुरी धाम में एक राजा था, जो भगवान जगन्नाथ को नियमित रूप से 56 भोग अर्पित करता था। उसी मंदिर के पास एक कुटिया में एक वृद्ध महिला रहती थी, जिसका कोई परिवार नहीं था। उसने भगवान जगन्नाथ को अपना पुत्र मान लिया था और रोज मंदिर जाकर भगवान के दर्शन करती थी। जब भगवान जगन्नाथ को भोग लगाया जाता था, तो वह महिला उन्हें ध्यान से निहारती रहती थी।
एक दिन, महिला ने देखा कि भगवान जगन्नाथ को भोग लगाने के बाद भी उनके होंठों पर भोग के अवशेष लगे रहते हैं। उसे चिंता हुई कि उसके पुत्र (भगवान जगन्नाथ) का पेट पूरी तरह से नहीं भरा है और उन्हें पूरी तरह से संतोष नहीं मिला है। उसे लगा कि भोग के बाद भगवान को कुछ ऐसा दिया जाना चाहिए जिससे उनका पाचन तंत्र सही रहे और वे स्वस्थ रहें। नीम का चूर्ण अपने औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है और पाचन तंत्र को ठीक रखने में मदद करता है। इस विचार से प्रेरित होकर, महिला ने भगवान जगन्नाथ को नीम का चूर्ण अर्पित करना शुरू किया। इस प्रकार, यह प्रथा धीरे-धीरे मंदिर में प्रचलित हो गई और अब भगवान जगन्नाथ के भोग की अनिवार्य प्रक्रिया का हिस्सा बन गई है। नीम का चूर्ण अर्पित करने की यह परंपरा भगवान के प्रति भक्त की गहरी भक्ति और समर्पण को दर्शाती है, जिसमें भक्त ने अपने भगवान की भलाई के लिए अपनी बुद्धि और प्रेम का उपयोग किया।