Ujjain: बीते रविवार को, उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर में एक अजीब घटना घटित हुई। भगवान महाकाल की भस्मारती के दौरान, मंदिर की परंपरा टूट गई। सूत्रों के अनुसार, सुबह 4 बजे भस्मारती शुरू होने से पहले ही, मंदिर प्रबंधन समिति के कर्मचारियों ने श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश करा दिया और उन्हें नंदी हॉल और गणेश मंडपम में बैठा दिया।
यह घटना मंदिर के पुजारियों को पसंद नहीं आई। उनका कहना है कि यह मंदिर की स्थापित परंपरा का उल्लंघन है। परंपरा के अनुसार, भस्मारती शुरू होने से पहले श्रद्धालुओं को गर्भगृह के बाहर इंतजार करना होता है। इस घटना से नाराज पुजारियों ने मंदिर प्रबंधन से शिकायत की है। मंदिर प्रबंधन ने मामले की जांच शुरू कर दी है और दोषी कर्मचारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जा सकती है। मामले को शांत करने के लिए कर्मचारियों ने पुजारियों से माफी मांगी। पुजारियों ने माफी स्वीकार कर ली और मामला शांत हो गया।
क्या है महाकाल मंदिर की परंपरा
उज्जैन में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। मंदिर में कई धार्मिक रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन किया जाता है, जिनमें से भस्मारती सबसे महत्वपूर्ण है। भस्मारती, जिसे शिव आरती भी कहा जाता है, भगवान शिव को राख अर्पित करने की एक प्राचीन परंपरा है। यह माना जाता है कि भगवान शिव को राख अर्पित करने से पापों का नाश होता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
भस्मारती प्रतिदिन सुबह 3 बजे से शुरू होती है। सभा मंडप में वीरभद्रजी के नाम पर पंडित द्वारा स्वस्तिवाचन किया जाता है। घंटी बजाकर भगवान महाकाल से आज्ञा लेने के बाद ही सभामंडप के चांदी के पट खोले जाते हैं। इस दौरान किसी अन्य की उपस्थिति नहीं रहती है। पुजारी महाकाल गर्भगृह के पट खोलकर भगवान का श्रृंगार, पूजन और आरती करते हैं। आरती के बाद भस्म (राख) तैयार की जाती है।
नंदी हॉल में नंदीश्वर की स्नान-पूजा के बाद ही श्रद्धालुओं को प्रवेश दिया जाता है। श्रद्धालु भगवान शिव को भस्म अर्पित करते हैं और आरती में भाग लेते हैं। भस्मारती के दौरान मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। केवल पुजारी और विशेष अनुमति प्राप्त कुछ श्रद्धालु ही इसमें शामिल हो सकते हैं। भस्मारती के दौरान मंत्रोच्चार और शंखनाद होता है। भस्मारती के दृश्य अत्यंत मनमोहक होते हैं। भस्मारती में भाग लेने से पापों का नाश होता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भस्म को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। माना जाता है कि भस्म में रोगों को दूर करने की शक्ति होती है।