Ganesh Chaturthi 2024: भगवान श्री गणेश का जन्म भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ था, जिसे गणेश चतुर्थी के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल गणेश चतुर्थी 7 सितंबर, शनिवार को पड़ी है। इस पावन दिन भगवान गणेश अपने वाहन चूहे पर सवार होकर घर-घर आशीर्वाद देने आते हैं। गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान गणेश की कथा सुनने की परंपरा है, जो मान्यता अनुसार, भाग्य को उज्ज्वल बनाती है। इस दिन के महत्व को समझाते हुए बताया है कि भगवान गणेश ने चूहे को अपना वाहन क्यों चुना और इस निर्णय के पीछे क्या रोचक कथा है। चूहे को गणेश जी के वाहन के रूप में चुनने की पौराणिक कहानी में छिपी है एक गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर, जो इस दिन की पूजा को और भी विशेष बनाती है। इस कथा के माध्यम से हम जान सकते हैं कि गणेश जी की भक्ति और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हमें किस प्रकार के कर्म और आचरण की आवश्यकता है।
पहली कथा
पहली कथा के अनुसार, गजमुख नामक असुरों का महाराजा ने हजारों युग पहले देवताओं और शक्तियों को अपनी अधीनता में लाने की योजना बनाई। उसकी इच्छा केवल यह नहीं थी कि वह शक्तिशाली और धनवान बने, बल्कि वह समस्त देवी-देवताओं पर अपनी प्रभुत्व स्थापित करना चाहता था। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, गजमुख ने अपने महल और राज्य को छोड़कर अरण्य में तपस्या की शुरुआत की। उसने दिन-रात बिना भोजन किए शिवजी से वरदान प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया, ताकि उसे अपार शक्ति और सामर्थ्य मिल सके। उसकी यह कठोर तपस्या और बलिदान इस बात का प्रमाण था कि वह अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था। उसकी इस तपस्या के दौरान, उसकी भक्ति और समर्पण ने उसे एक खास वरदान की ओर अग्रसर किया, जो आगे चलकर एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम की शुरुआत बनी।
गजमुख की तपस्या और शिवजी का वरदान
कई वर्षों की तपस्या और कठोर साधना के बाद, शिवजी ने गजमुख की भक्ति और समर्पण को देखकर प्रसन्नता व्यक्त की। शिवजी ने उसकी अथक तपस्या और निष्ठा को मान्यता देते हुए उसे अद्वितीय शक्तियाँ प्रदान कीं, जिनके कारण गजमुख अत्यंत ताकतवर और शक्तिशाली बन गया। शिवजी द्वारा दी गई सबसे विशेष शक्ति यह थी कि उसे किसी भी अस्त्र या शस्त्र से पराजित या मारा नहीं जा सकता था। इस असाधारण वरदान ने गजमुख को अजेय बना दिया, जिससे उसकी शक्ति और सामर्थ्य का दायरा और भी बढ़ गया। अब वह न केवल देवताओं को चुनौती देने की स्थिति में था, बल्कि अपनी अद्वितीय शक्ति के बल पर समस्त संसार पर प्रभुत्व स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठा चुका था। इस शक्तिशाली वरदान ने उसे अमरता की ओर अग्रसर किया, और उसकी उपस्थिति से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक नई शक्ति का संचार हुआ।
गजमुख की शक्तियों का दुरुपयोग
असुरों के राजा गजमुख को अपनी प्रकट शक्तियों पर अत्यधिक घमंड हो गया, जिससे उसकी सोच और व्यवहार में बड़े परिवर्तन आए। उसने अपनी प्राप्त शक्तियों का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और देवताओं पर आक्रमण करने लगा। गजमुख की इच्छा थी कि सभी देवी-देवता उसकी पूजा करें और उसकी अधीनता स्वीकार करें। अपनी असाधारण शक्तियों के मद में, उसने ब्रह्माण्ड के समस्त देवताओं को चुनौती दी और उन्हें अपनी शक्ति के आगे झुकने पर मजबूर करने की कोशिश की। इस प्रकार के आक्रमण और दुरुपयोग ने समस्त संसार को संकट में डाल दिया, और देवताओं को अपनी रक्षा के लिए एक नई योजना और समर्पण की आवश्यकता महसूस हुई। गजमुख की यह अमानवीय और अहंकारी प्रवृत्ति न केवल देवताओं के लिए एक चुनौती बन गई, बल्कि समस्त सृष्टि के लिए भी एक बड़ा संकट उत्पन्न कर दिया।
देवताओं का शिवजी से सहायता की गुहार
सभी देवताओं में केवल ब्रह्मा, विष्णु, शिव, और गणेश जी ही गजमुख के आतंक से सुरक्षित बचे हुए थे। गजमुख के नष्टकारी आक्रमण और भयावह शक्ति से बचने के लिए, देवताओं ने शिव, विष्णु, और ब्रह्मा जी के पास जाकर उन्हें अपनी संकटपूर्ण स्थिति से अवगत कराया और राहत की गुहार लगाई। देवताओं की प्रार्थना और दीन-हीनता को सुनकर, शिव जी ने निर्णय लिया कि इस संकट का समाधान गणेश जी ही कर सकते हैं। गणेश जी को इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए भेजा गया, ताकि वह गजमुख के आतंक को समाप्त कर सकें और सृष्टि को उसके नाशकारी प्रभाव से मुक्त कर सकें। गणेश जी की शक्ति और बुद्धिमत्ता पर भरोसा करते हुए, शिव जी ने उन्हें इस महान चुनौती के लिए नियुक्त किया, ताकि समस्त देवताओं और सृष्टि की रक्षा सुनिश्चित की जा सके। गणेश जी का यह कार्य न केवल देवताओं के लिए बल्कि समग्र ब्रह्माण्ड के लिए एक महत्वपूर्ण और निर्णायक कदम साबित होने वाला था।
गणेश जी की गजमुख से युद्ध और चतुराई
गणेश जी ने असुर गजमुख के खिलाफ युद्ध में उसे बुरी तरह से घायल कर दिया, लेकिन गजमुख ने अपनी हार मानने से इनकार कर दिया। इस संकटपूर्ण स्थिति में, गजमुख ने अपनी जान बचाने के लिए एक चाल चली और स्वयं को एक चूहे के रूप में बदल लिया, ताकि वह गणेश जी से बच सके। लेकिन गणेश जी ने अपनी सूझ-बूझ और शक्ति का प्रयोग करते हुए, चूहे के रूप में परिवर्तित गजमुख को पकड़ लिया। गणेश जी ने उसे जीवन भर के लिए चूहे के रूप में बदल दिया और उसे अपने वाहन के रूप में अपनाया। इस प्रकार, गजमुख की शक्तियों का दुरुपयोग समाप्त हो गया और वह गणेश जी के वाहन के रूप में जीवन भर उनकी सेवा करने को बाध्य हो गया। गणेश जी की यह कार्रवाई न केवल गजमुख की शक्ति को नियंत्रित करने में सफल रही, बल्कि यह भी दर्शाती है कि सही समय पर सही निर्णय लेने से सबसे कठिन समस्याओं का समाधान संभव है। गणेश जी ने इस कथा के माध्यम से यह साबित किया कि उनके द्वारा किए गए निर्णय और कार्रवाइयाँ न केवल न्यायपूर्ण होती हैं, बल्कि सृष्टि के समस्त तत्वों के बीच संतुलन और नियंत्रण बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
(Disclaimer-यह जानकारी सामान्य मान्यताओं के आधार पर दी गई है। Basuram.com इसकी सत्यता की गारंटी नहीं देता।)