Ganesh Chaturthi 2024: गणपति बप्पा मोरया का जाप गणेश उत्सव के दौरान हर गली, हर मोहल्ले में गूंजता है, लेकिन इस प्रसिद्ध मंत्र में ‘मोरया’ शब्द की उत्पत्ति के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। गणपति के भक्तों को ‘गणपत्य’ कहा जाता है, जो मानते हैं कि गणेश ही परमात्मा और परब्रह्म हैं। गणपति की भक्ति दक्षिण भारत और महाराष्ट्र, विशेषकर महाराष्ट्र और कर्नाटक में गहराई से जुड़ी हुई है।
जब हम “गणपति बप्पा मोरया” का जाप करते हैं, तो पहले दो शब्द आसानी से समझ में आते हैं – ‘गणपति’ का अर्थ है गणेश, और ‘बप्पा’ का मतलब है पिता या संरक्षक। लेकिन ‘मोरया’ शब्द का एक विशेष महत्व है जो इतिहास और भक्ति से गहराई से जुड़ा हुआ है। इस शब्द का संबंध संत मोरया गोसावी से है, जो 14वीं शताब्दी में पुणे के पास चिंचवड़ में गणपति की महान भक्त थे। उन्होंने अपने जीवन में गणेश भक्ति का प्रचार-प्रसार किया और कई लोगों को गणेश भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। उनकी गहन तपस्या और भक्ति के कारण, गणेश ने उन्हें अपने प्रिय भक्त के रूप में स्वीकार किया, और उनकी उपासना को अमर करने के लिए ‘मोरया’ शब्द का उपयोग किया जाने लगा।
कौन थे मोरया गोसावी
मोरया गोसावी का जन्म एक अत्यंत धार्मिक परिवार में हुआ था, जहां गणेश भक्ति का विशेष महत्व था। उनके माता-पिता, वामनभट्ट और उमाबाई, मूल रूप से कर्नाटक के बीदर से थे, लेकिन जीवन के एक पड़ाव पर वे मोरगांव में आकर बस गए। मोरगांव, जो कि आज भी गणपति भक्ति के केंद्रों में से एक माना जाता है, उनका निवास स्थान बन गया। गणेश जी उनके कुलदेवता थे, और वे अपने जीवन के हर क्षण में गणेशजी की उपासना में लीन रहते थे।
वामनभट्ट और उमाबाई का विवाह कई वर्षों तक संतानहीन रहा, लेकिन उनकी आस्था और भक्ति कभी डगमगाई नहीं। वे दिन-रात गणेशजी की आराधना करते रहे और उनकी कृपा की प्रतीक्षा करते रहे। अंततः उनकी भक्ति का फल उन्हें प्राप्त हुआ, और एक पुत्र का जन्म हुआ। इस पुत्र को वे गणेशजी का आशीर्वाद और उपहार मानते थे, इसलिए उन्होंने उसका नाम ‘मोरया’ रखा। इस नाम के पीछे उनका विश्वास था कि यह पुत्र स्वयं भगवान मोरया की देन है, और उसके जीवन में गणेशजी की कृपा सदैव बनी रहेगी।
मोरया ने अपने बचपन से ही एक गहन धार्मिक परिवेश में समय बिताया। उनके पिता वामनभट्ट ने उन्हें प्रारंभिक शिक्षा दी, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण था गणेशोपासना का ज्ञान, जो उन्होंने अपने पिता से प्राप्त किया। वामनभट्ट ने मोरया को गणेशजी की भक्ति और उपासना की गहरी समझ दी, और इस प्रकार मोरया ने अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य गणेशजी की सेवा और भक्ति को बना लिया।
मोरया गोसावी की तपस्या और भक्ति
मोरया गोसावी का जीवन अद्वितीय तपस्या, भक्ति, और चमत्कारों से भरा हुआ था, जिनकी गूंज आज भी पूरे देश में सुनाई देती है। उनके माता-पिता, वामनभट्ट और उमाबाई, जिन्होंने अपने पुत्र को भगवान गणेश का आशीर्वाद मानकर उसका नाम ‘मोरया’ रखा था, ने लंबी आयु पाई। वामनभट्ट 125 वर्ष और उमाबाई 105 वर्ष की उम्र में इस संसार से विदा हो गए। अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद, मोरया गोसावी ने अपने जीवन को पूरी तरह से गणेश भक्ति और तपस्या में समर्पित कर दिया। उन्होंने मोरगांव, थेउर और अंततः चिंचवड़ में तपस्या की, जहां वे स्थायी रूप से बस गए।
मोरया गोसावी की कठिन तपस्या और सिद्धियां
चिंचवड़ में, मोरया गोसावी ने पवना नदी के किनारे कठिन तपस्या की, जो उनकी अटूट भक्ति का प्रतीक थी। वे कई दिनों तक केवल दूर्वा घास का रस पीकर तपस्या करते रहे। एक बार उन्होंने 42 दिनों तक बिना हिले-डुले एक ही आसन पर बैठकर साधना की, जो उनकी अद्वितीय तपस्या का प्रमाण है। उनकी तपस्या इतनी प्रबल थी कि उन्होंने कई सिद्धियां प्राप्त कीं, जिससे उनकी दिव्य शक्ति का प्रसार हुआ। उनकी शक्ति के आगे बाघ जैसे हिंसक जानवर भी शांत हो जाते थे, और विषैले सांपों का विष निष्क्रिय हो जाता था। मोरया गोसावी ने कई चमत्कार किए, जिनमें से एक अंधों को दृष्टि वापस लाना भी था, जो उनकी अद्भुत शक्ति और करुणा का प्रमाण था।
मोरया गोसावी की परिवारिक धारा और अंतिम समाधि
मोरया गोसावी ने न केवल स्वयं तपस्या की, बल्कि उन्होंने अपनी पत्नी को भी ब्रह्मविद्या का ज्ञान दिया, जो उनके ज्ञान और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। उनका पुत्र, जिसे उन्होंने ‘चिंतामणि’ नाम दिया, भी उनकी आध्यात्मिक धारा का उत्तराधिकारी बना। संत तुकाराम महाराज ने चिंतामणि को ‘चिंतामणि देव’ का संबोधन दिया, जिसके बाद उनका पारिवारिक नाम ‘देव’ हो गया। मोरया गोसावी ने संवत 1618 में पवना नदी के किनारे अपनी तपस्या का अंतिम अध्याय लिखा और वहीं पर समाधि ले ली।
मोरया गोसावी की भक्ति और प्रभाव
उनकी समाधि आज भी महाराष्ट्र और देश के विभिन्न हिस्सों में भक्तों के लिए एक पवित्र स्थान बनी हुई है। मोरया गोसावी की भक्ति और तपस्या का प्रभाव इतना गहरा था कि आज भी उनके नाम का जयघोष “गणपति बप्पा मोरया” के रूप में पूरे देश में सुनाई देता है। उनका जीवन, उनकी साधना, और उनकी सिद्धियां हमें यह सिखाती हैं कि सच्ची भक्ति और तपस्या के बल पर असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है, और मोरया गोसावी इसका जीवंत उदाहरण हैं।
(Disclaimer- यह जानकारी सामान्य संदर्भ के लिए प्रदान की गई है। Basuram.com इसकी सत्यता और सटीकता की जिम्मेदारी नहीं लेता है।)