नर्मदा परिक्रमा की परंपरा हिंदू धर्म में एक पवित्र और कठिन तपस्या मानी जाती है, जिसे करने के लिए अपार धैर्य और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। इस पवित्र यात्रा में एक विशेष संत, जिन्हें श्रद्धा और सम्मान से “दादा गुरु” कहा जाता है, पिछले 1400 दिनों से नर्मदा परिक्रमा कर रहे हैं और आश्चर्यजनक रूप से, उन्होंने इस दौरान कुछ भी ग्रहण नहीं किया है।
दादा गुरु का तप और समर्पण
दादा गुरु, जिन्होंने यह अद्वितीय संकल्प लिया है, एक संत के रूप में जाने जाते हैं, जो गहन आध्यात्मिक साधना और तपस्या के प्रतीक बन गए हैं। नर्मदा परिक्रमा एक ऐसी यात्रा है जो नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर पूरी की जाती है, और यह संत इस यात्रा को 1400 दिनों से बिना भोजन के जारी रखे हुए हैं।
खातेगांव में दादा गुरु का आगमन
आज का दिन खातेगांव के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा, जब दादा गुरु अपनी पवित्र यात्रा के दौरान इस छोटे से कस्बे में पहुंचे। दादा गुरु का आगमन न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि यह स्थानीय लोगों के लिए एक अद्वितीय अनुभव भी था, जिसे वे जीवनभर याद रखेंगे।
उनके आगमन से वहां के लोगों में अपार श्रद्धा और उत्साह देखने को मिला। दादा गुरु का तप और संकल्प लोगों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन गया है, और उनका यह कठिन मार्ग सबके लिए आस्था और विश्वास की शक्ति का प्रतीक बन चुका है।
दादा गुरु के आगमन पर 1400 पौधों का वितरण
दादा गुरु के 1400 दिनों की कठिन तपस्या के दौरान देवास जिले के खातेगांव में उनके आगमन पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर, दादा गुरु के सम्मान में 1400 पौधों का वितरण किया गया।
पौधों का वितरण
दादा गुरु की तपस्या और उनके जीवन के प्रतीक के रूप में, 1400 पौधों को क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर वितरित किया गया। इस पहल का उद्देश्य न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना है, बल्कि दादा गुरु की यात्रा और उनकी तपस्या के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करना भी है।
समारोह की विशेषताएँ
इस कार्यक्रम में स्थानीय समुदाय और श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में भाग लिया। पौधों का वितरण समारोह दादा गुरु के संदेश और उनकी तपस्या के प्रति सम्मान को दर्शाता है। यह कदम पर्यावरणीय जागरूकता को भी बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।